Osteoarthritis (संधिवात) – Sign, Symptoms, Treatment in Ayurveda (Hindi)

Osteoarthritis (संधिवात) क्या है

Osteoarthritis या degenerative joint disease, एक जीर्ण संधिगत रोग है जो कि arthritis का ही एक प्रकार है। हमारे शरीर के सभी संधि (joints) स्नायु एवं पेशियों  से कसे हुए रहते हैं जिससे उनकी सुरक्षा एवं गतिशीलता सुनिश्चित हो सके। इन्हीं स्नायुवों को आधुनिक विज्ञान में cartilage कहा जाता है। Cartilage हड्डियों एवं जोड़ों के चारों तरफ लिपटकर गद्दे की तरह उसकी सुरक्षा करता है।

जोड़ों के स्नायुं तंत्र में क्षरण (degeneration) की स्थिति होने पर स्नायु की कोशिकाएं टूटने लगती हैं जो कि osteoarthritis की प्रमुख वजह होती है। Cartilage के क्षरण (Cartilage breakdown) के कारण हड्डियाँ आपस में रगड़ने लगती हैं जिसकी वजह से दर्द एवं गतिशीलता की कमी जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

सामान्यतः उम्र के मध्य में एवं बुजुर्गों को osteoarthritis की तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इसका प्रभाव मुख्य रूप से घुटनों, हाथों, कमर एवं गर्दन के जोड़ों पर होता है।

सामान्य बोलचाल में rheumatoid arthritis, gouty arthritis एवं osteo arthritis तीनों रोगों को arthritis कह दिया जाता है, परन्तु ये तीनों अलग अलग रोग हैं एवं तीनों रोगों के कारण, लक्षण एवं चिकित्सा अलग अलग होती है। सिर्फ जोड़ों या हड्डियों में दर्द होना ही एकमात्र समानता है।

Osteoarthritis के बारे में आयुर्वेद क्या कहता है?

आयुर्वेद के अनुसार osteoarthritis वातदोष के प्रकुपित होने पर होने पर होता है, एवं इससे मुख्यतः हमारे जोड़ या संधि प्रभावित होते हैं। इसीलिए इसे संधिवात रोग कहा जाता है।

वात दोष हमारे शरीर में वायु तत्व या हवा का प्रतिनिधित्व करता है जो शरीर के सभी गतियों, प्रवाह एवं मष्तिष्क को नियंत्रित करता है।

संधिवात में वात दोष विशेषतः संधियों में बढ़ने लगता है। चूंकि रुक्षता वात का प्रधान गुण है, वह शरीर के स्नेह (fluidity) का अवशोषण करता है। वात शरीर का क्षरण एवं अपचय (destructive & catabolic) भी करता है। इन्हीं गुण एवं कर्मों की वजह से वात दोष का संधियों में प्रकुपित या बढ़ने की स्थिति पर वह संधियों से cartilage का क्षरण एवं synovial fluid का क्षय करता है। एवं जोड़ों में दर्द आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।

संधिवात के कारण (Causes of osteoarthritis)

रुक्ष या सूखा, ठंडा या बासी भोजन, अत्यधिक शीत एवं शुष्क मौसम, व्यवसाय की वजह से जोड़ों का अधिक इस्तेमाल होना, मोटापा, जोड़ों में चोट, आनुवंशिकता और बुढ़ापा।

संधिवात के लक्षण (Symptoms of osteoarthritis)

  • जोड़ों में दर्द
  • जोड़ों में सूजन
  • संधियों के हिलने या चलने पर कट कट की आवाज आना
  • संधियों की अकर्मण्यता या कठोरता

संधिवात चिकित्सा (Osteoarthritis treatment in Ayurveda)

संधिवात की आयुर्वेदिक चिकित्सा ना सिर्फ संधियों या स्नायुओं के क्षरण एवं क्षय को रोकता है बल्कि ये क्षीण हुए स्नायु एवं संधि के नवकोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है। आयुर्वेदिक औषधियों एवं पंचकर्म चिकित्सा द्वारा संधियों में स्नेहांश की वृद्धि होकर उनकी गतिशीलता बढ़ती है एवं जोड़ों को मजबूती मिलती है।

आयुर अमृतम क्लीनिक में हम दोषों की प्रधानता, कारण, लक्षण, काल एवं रोगी के वय की समीक्षा करने के पश्चात आयुर्वेदिक औषधियों एवं आवश्यकतानुसार पंचकर्म चिकित्सा का प्रयोग कर संधिवात की चिकित्सा करते हैं।

यूँ तो आयुर्वेद में वात रोगों की चिकित्सा हेतु अनेक योग एवं परिकल्पनाएं वर्णित हैं, किन्तु इस लेख में सिर्फ हमारे चिकित्सा केन्द्रों में प्रयोग की जाने वाली औषधियां एवं चिकित्सकीय क्रियाओं का वर्णन कर रहें हैं।

नोट: स्वचिकित्सा हानिकर हो सकती है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या होने पर चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें।

संधिवात में सामान्य औषधीय व्यवस्था पत्र (Ayurvedic prescription for osteoarthritis)

  1. आयुरअमृतम वातहर गुगुल/ योगराज गुगुल/ महायोगराज गुगुल/ रास्नादि गुगुल (सभी प्रकार के दर्द में)/ सिंहनाद गुगुल (दोषों के आमावस्था की स्थिति में)/ त्रयोदशांग गुगुल या Ayurvite Arthrozyl Capsules (कमर दर्द, गर्दन के दर्द जिनमें वातनाड़ियां/ nerves भी आक्रांत होती हैं। हाथों अथवा पैरों में झुनझुनी या radiating pain की स्थिति में) – 1-1 प्रातः सायं भोजन के बाद
  2. चंद्रप्रभा वटी – 1-1 प्रातः सायं भोजन के बाद
  3. पुनर्नवादि वटी/ दशमूल घन सत्व टेबलेट – 1-1 प्रातः सायं भोजन के बाद

– मोटापे की स्थिति में Size Zero capsules 1-1 प्रातः सायं भोजन से आधे घंटे पूर्व अवश्य दें।

– कब्ज होने पर एरण्ड तेल 10-20ml रोगी के बलाबल का विचार कर रात में सोते समय गुनगुने दूध या पानी से दें।

जीर्ण संधिवात में उपरोक्त औषधियों के साथ निम्नलिखित औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है-

  1. आयुरअमृतम वातहर चूर्ण 60gm, गोदंती भस्म 10gm, पुनर्नवा चूर्ण 60gm, त्रिफला चूर्ण/ एरण्डमूल चूर्ण 60gm, दशमूल चूर्ण/ अश्वगंधादि चूर्ण/ शतावर्यादि चूर्ण 60gm – 1-1 चम्मच (4-5gm) प्रातः सायं भोजन से 1 घंटे पूर्व गुनगुने जल से लें।

संधिवात में पंचकर्म चिकित्सा (Panchakarma in osteoarthritis)

  1. आमावस्था होने पर उद्वर्तनं अथवा चूर्ण पिण्ड स्वेद 1-3 दिन या निरामावस्था होने तक
  2. अभ्यंगम, सर्वांग वाष्प स्वेदन या पत्र पिण्ड स्वेद, योग वस्ति या काल वस्ति
  3. जानू वस्ति या पिचु, कटि वस्ति या पिचु
  4. उपनाहम या लेपम
  5. कषाय या तेल धारा (काय सेकम)
  6. क्षेत्रीय नाड़ी स्वेदन
  7. अग्निकर्म

आयुर्वेद में अन्य बहुत से औषधीय योग एवं पंचकर्म चिकित्सा व्यवस्था हैं जिनका निर्धारण चिकित्सक रोग एवं रोगी की अवस्था के अनुसार अपने अनुभव से करता है। ֍֍֍

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