Psoriasis (किटिभ) – Sign, Symptoms, Treatment in Ayurveda (Hindi)

Psoriasis क्या है?

त्वचा रोगों में अप्रत्याशित लक्षणों वाला जटिल रोग Psoriasis सबसे अधिक कष्टदायक होता है। सामान्यतः त्वचा की अंतर्निहित कोशिकाएं नियमित रूप से बनती एवं बढ़ते रहती हैं । वे त्वचा की सतह तक पहुंचती हैं और फिर नष्ट हो जाती हैं । Psoriasis में त्वचा की कोशिकाएं सामान्य से लगभग 10 गुना तेज़ी से बढ़ने लगती हैं। उनकी मात्रा में एकाएक वृद्धि होने की वजह से सफेद, रुक्ष उभार युक्त लाल या कत्थे रंग के चमकीले या धूसर व्रण (patches) उत्पन्न हो जाते हैं।   रुक्षता बढ़ने पर व्रण के उपरी सतह की त्वचा छिलके की तरह निकलने लगती है। सोरायसिस आमतौर पर घुटने, कोहनी और सिर पर होता है।  यह शरीर के अन्य हिस्से जैसे छाती, पेट, पीठ, हथेलियों और पैरों के तलवों को भी प्रभावित कर सकता है। Psoriasis संक्रामक रोग नहीं है। इस लेख में हम सोरायसिस के कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं पंचकर्म के बारे में संक्षिप्त में (Psoriasis treatment in Ayurveda) चर्चा करेंगे।

Psoriasis के बारे में आयुर्वेद क्या कहता है?

आयुर्वेद में Psoriasis का वर्णन कुष्ठ रोगाधिकार में किया गया है। “कुष्ठ” रोग में सभी प्रकार के त्वचा रोगों को समाहित किया गया है। आयुर्वेद मनीषियों ने कुल 18 प्रकार के त्वचा रोगों को कुष्ठ रोगाधिकार में विस्तार पूर्वक वर्णित किया है। इन 18 प्रकार के कुष्ठ रोगों में से किटिभ एवं एककुष्ठ के लक्षण Psoriasis से काफी मिलते जुलते हैं। ये दोष निर्दिष्ट निदान (कारण) जैसे विरुद्ध आहार (उदाहरण – दूध के साथ नमक या खट्टे खाद्य पदार्थ, ठंडे के गर्म खाद्य पदार्थ इत्यादि), तैलीय खाद्य पदार्थों का निरंतर सेवन करने, मानसिक तनाव, छर्दि (उल्टी) के वेग को रोकने के कारण विषाक्त पदार्थों के त्वचा में संचय होने से प्रकुपित होते हैं। ये विषाक्त पदार्थ रस (nutrient plasma), रक्त (blood), मांस (muscles) और लसिका (lymphatic) जैसी गहरी ऊतकों में जमा होते हैं। ये विषाक्त पदार्थ गहरे ऊतकों के प्रदूषण का कारण बनते हैं, जो सोरायसिस को जन्म देती हैं।

दोषों की प्रधानता, समय एवं कारणों के अनुसार बदल सकती है। इसी वजह से कई बार एक कुष्ठ कालातीत होने पर किटिभ के लक्षणों से युक्त हो जाता है अथवा किटिभ, एक कुष्ठ के समान निर्दिष्ट होने लगता है। सभी प्रकार के कुष्ठ रोग त्रिदोषज होते हैं परन्तु दोषों के बलाबल का लक्षणों के अनुसार विचार कर ही चिकित्सा करनी चाहिए।

Psoriasis treatment in Ayurveda (सोरायसिस की आयुर्वेदिक चिकित्सा)

लक्षणों एवं दोष प्रधानता की सही परख एवं अवलोकन करने के पश्चात ही सोरायसिस की चिकित्सा की जानी चाहिए। सोरायसिस के मामलों में आयुर्वेदिक उपचार का प्राथमिक उद्देश्य रक्त और ऊतकों का शुद्धिकरण है। शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ किया जाता है और आगे के संचय को रोकने के लिए आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। धातुपोषक, व्रणहर एवं वर्ण्य औषधियों को लेप अथवा तेल के रूप में  त्वचा के पूर्ण उपचार को बढ़ावा देने, ऊतकों को मजबूत एवं सुदृढ़ करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

यूँ तो आयुर्वेद में कुष्ठ रोगों की चिकित्सा हेतु अनेक योग एवं परिकल्पनाएं वर्णित हैं, किन्तु इस लेख में सिर्फ हमारे चिकित्सा केन्द्रों में प्रयोग की जाने वाली औषधियां एवं चिकित्सकीय क्रियाओं का वर्णन कर रहें हैं। स्वचिकित्सा हानिकर हो सकती है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या होने पर चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें।

Psoriasis में पंचकर्म

वमन, विरेचन, वस्ति कर्म, रक्तमोक्षण, तक्रधारा, सर्वांग कषाय धारा इत्यादि

दोष, काल, वय एवं रोगी बल का विचार कर उपरोक्त पंचकर्म एवं उपकर्म में से निर्देशित कर रोगी पर प्रयुक्त कराया जाता है। इन कर्मों के पूर्वकर्म एवं पश्चातकर्म का भी चिकित्सक के निर्देशानुसार पालन करना आवश्यक होता है।

Psoriasis की आयुर्वेदिक औषधियाँ

आरग्वाधादि कषायं, मजिष्ठादि कषायं, शोणितअमृतादि कषायं, पटोलादि कषायं, गंधक रसायन, रसमाणिक्य, तालसिंदूर, आरोग्यवर्धिनी वटी, पुनर्नवादि वटी, गिलोय, पंचनिम्बादि चूर्ण, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, महातिक्तकम घृतं/ कषायं, गुगुलुतिक्तकम घृतं/ कषायं, Skinzyl Capsules, Septivite Capsules, Livy Capsules, Shayanam Capsules इत्यादि

Psoriasis में सामान्य चिकित्सा व्यवस्था पत्र

पित्त की प्रधानता में

  1. मंजिष्ठादि कषायं, गुगुलुतिक्तकम कषायं – 15-15 ml औषधि 60 ml जल में मिलाकर प्रातः सायं भोजन से 1 घंटे पूर्व
  2. गंधक रसायन, पंचतिक्तघृत गुगुल, Skinzyl Capsules – 1-1 वटी/ कैप्सूल प्रातः सायं भोजन के पश्चात
  3. मणिभद्र गुड़म – 10 ग्राम रात्रि भोजनोपरांत सुखोष्ण जल के अनुपान से
  4. विरेचन कर्म, तक्रधारा

कफ की प्रधानता में –

  1. आरग्वधादि कषायं, निम्बादि कषायं – 15-15 ml औषधि 60 ml जल में मिलाकर प्रातः सायं भोजन से 1 घंटे पूर्व
  2. कैशोर गुगुल, आरोग्यवर्धिनी वटी, Skinzyl Capsules – 1-1 वटी/ कैप्सूल प्रातः सायं भोजन के पश्चात
  3. वमन कर्म, कषाय धारा

वात की प्रधानता में

  1. पटोलादि कषायं, गुगुलुतिक्तकम कषायं – 15-15 ml औषधि 60 ml जल में मिलाकर प्रातः सायं भोजन से 1 घंटे पूर्व
  2. कैशोर गुगुल, आरोग्यवर्धिनी वटी, Skinzyl Capsules – 1-1 वटी/ कैप्सूल प्रातः सायं भोजन के पश्चात
  3. महातिक्तकम घृतं – 10 ग्राम रात्रि भोजनोपरांत सुखोष्ण जल के अनुपान से
  4. वस्ति कर्म, शिरोधारा

नोट- मानसिक तनाव कि स्थिति में शयनम कैप्सूल्स एवं पाचन क्रिया सम्बन्धी अनियमिता में लिवी कैप्सूल्स  का प्रयोग किया जाना लाभप्रद पाया गया है।

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